अकबर और बीरबल की कहानी: “सच्चे मित्र”

यह कहानी है मुग़ल सम्राट अकबर और उनके मंत्री बीरबल की, जिनका दोस्ताना सबसे अद्भुत था। उनका दोस्ताना उनकी बुद्धिमत्ता और मित्रता का प्रतीक था।

एक दिन, अकबर और बीरबल एक साथ बाग़ में सैर कर रहे थे। वे बहुत ही खुश और मस्ती में थे। अकबर ने बीरबल से पूछा, “बीरबल, क्या तुम मुझे एक सच्चे मित्र की पहचान बता सकते हो?”

अकबर और बीरबल

बीरबल हँसते हुए जवाब दिया, “जी हुज़ूर, एक सच्चे मित्र की पहचान आपकी समझ में होनी चाहिए। वह आपके दुखों और सुखों के साथ हो, और सबसे महत्वपूर्ण बात, वह आपके साथ हर समय सच्च बोलेगा।”

अकबर ने सोचा कि वह इस चुनौती को पूरा कर सकते हैं। वह अपने मंत्रीगणों से एक सच्चे मित्र की तलाश करने का आदेश दिया।

मंत्रीगण बड़ी मेहनत करके कुछ दिनों तक टले, परंतु कोई भी व्यक्ति अकबर के सच्चे मित्र के रूप में स्वीकार्य नहीं था। अकबर बहुत दुखी हो गए कि उनके पास इस चुनौती का सही जवाब नहीं है।

एक दिन, अकबर और बीरबल फिर बाग़ में गए। अकबर ने बीरबल से कहा, “बीरबल, मेरे मंत्रीगण सच्चे मित्र की तलाश में हैं, परंतु कोई भी सही उत्तर नहीं दे रहा।”

बीरबल ने मुस्कराता हुआ  चेहरे से कहा, “हुज़ूर, वास्तविक मित्र को पहचानने के लिए, हमें उनका साथ चाहिए, और हमें उनसे एक कठिन सवाल पूछना चाहिए।”

अकबर खुश हो गए और सहमत हो गए। वे एक गरीब आदमी को बुलवाया और उससे एक कठिन सवाल पूछा, “क्या तुम हमारे सच्चे मित्र हो सकते हो?”

गरीब आदमी ने धीरे से कहा, “हुज़ूर, मैं आपके सच्चे मित्र नहीं हूँ, परंतु मैं आपके खुशियों और दुखों के साथ हूँ।”

अकबर ने बीरबल से मुस्कराते हुए कहा, “यह तो बिल्कुल सही है, यह आदमी हमारे सच्चे मित्र है।”

कहानी से सीख –

इस कहानी से हमें यह सिखने को मिलता है कि सच्चे मित्र को पहचानने के लिए केवल व्यक्तिगत योग्यता या समृद्धि की आवश्यकता नहीं होती, बल्कि यह महत्वपूर्ण होता है कि वह आपके साथ खुशियों और दुखों में साझा करने के लिए तैयार हो।

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